मैं राम पर लिखूं मेरी हिम्मत नहीं है कुछ, तुलसी ने बाल्मीकि ने छोड़ा नहीं है कुछ.... उक्त लाइनों से युवा कवि कुमार विश्वास ने भगवान राम और माता जानकी के जीवन पर जो कविता के माध्यम से मर्यादा व संस्कार की नई परिभाषा पेश की।
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय लोक में राम विषयक पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में पहुंचे युवा कवि डॉ. कुमार विश्वास के कविता संग्रह से जो शब्द निकले उसने लोगों को ज्ञान, मर्यादा व संस्कार की नई परिभाषा से अभिभूत ही नहीं किया, बल्कि कलयुग के रावण से भी लोगों को रूबरू कराया। उन्होंने अपनी कविता के जरिये परिवार की मर्यादाओं व संस्कारों को रेखांकित करते हुये आधुनिकता के दौर में जी रहे युवा पीढ़ी को रिश्तों के महत्व को भी बखूबी समझाया।
उन्होंने कहा कि टीम मैनेजमेंट का सबसे बड़ा उदहारण राम हैं, क्योंकि भगवान राम को अपने दल पर भरोसा था और रावण को अपने बल पर। उन्होंने कहा कि तब लंका में रहने वाले राक्षस जैसे तड़का, सुबाहु, खर और दूषण लंका में कोई लूटपाट नहीं करते बल्कि भारत मे आकर करते थे। आज के समय में लोग यहां के विश्वविद्यालय में करते है, कैम्पस में करते हैं, इसलिये लंका उपभोग के वादी प्रदर्श की वह जननी है जो आज भी चल रही है, बस किरदार बदल गए हैं। उन्होंने वर्तमान की लंका और अयोध्या का तुलनात्मक विश्लेषण त्रतायुग की अयोध्या और लंका से किया है। उन्होंने कहा कि अयोध्या सात्विकता का प्रतीक है और लंका भौतिकता का जबकि किष्किंधा वंचितों का, इसलिये राम जानते थे कि बिना किष्किंधा को साथ लिये लंका पर विजय नहीं प्राप्त की जा सकती है। उसी तरह दिल्ली और लखनऊ को भी सोचना होगा कि बिना वंचितों को साथ लिये वर्तमान की लंका पर विजय नहीं प्राप्त हो सकता। वहीं उन्होंने अपनी कविता की तरकस से जो शब्दों के तीर चलाये हैं, उसने परिसर बैठे लोगों को तालियां बजाने पर ही मजबूर नहीं किया बल्कि सोचने पर भी विवश कर दिया।
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