अयोध्या। डाॅ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, संस्कार भारती, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली एवं अयोध्या शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में "लोक मे राम" विषय पर आयोजित कान्क्लेव के दूसरे एकेडमी सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए निवाण के श्री राम परिहार ने कहा कि भारत की पवित्र धरती पर राम और श्रीकृष्ण के रूप में प्रभु ने अवतार लिया है। भारत जैसा सुन्दर देश पूरे पृथ्वी पर कही नही है। एक सास्वत परम्परा को लोक परम्पराओं ने काफी संभाल कर रखा है। अंग्रेजों और मुगलों की गुलामी के बाद भी भारत अभी भी बचा है। अब भविष्य के निर्माण की सामग्री को बचा कर रखना होगा। उन्होंने कहा कि हल्दी घाटी की लड़ाई में लोक खड़ा है।संस्कृति की असली रक्षक मातायें व बहनें है। उन रीति रिवाजों को अपनी परम्पराओं के अनुरूप बचाकर रखना है। सांस्कृतिकता की अमर धारा है, जबतक सरयू में जल रहेगा तब तक संस्कृति रहेगी। बाल्मीकि की विराट छाया में माॅ धरती के विशाल आॅचल में सीता ने लवकुश को जन्म दिया। परिहार ने कहा कि खेती और संस्कृति दोनों में राम बसते है। हम राजनीतिक रूप से गुलाम रहें लेकिन हमारी लोक परम्पराओं ने हमें बचाएं रखा। जन्म से मृत्यु के गीतों में भी उत्सव मनाया जाता है। उसमें भी राम बसते है। उठते राम चलते राम भारतीय लोक के राम आत्मा में बसते है। भगवान राम सघर्ष के समय आत्मीय सम्बल प्रदान करते है। उन्होंने कहा कि मनक्रम वचन की संस्कृति हमें राम से मिली है।
वरिष्ठ साहित्यकार एवं चिन्तक नरेन्द्र कोहली ने कहा कि राम कथा में सबसे महत्वपूर्ण घटनाक्रम वनगमन है। सारी अयोध्या उनके पीछे जा रही है। वनगमन से रोकने के लिए। एक भी ऋषि ने राम को रोकने के लिए कोशिश नही की कि वनगमन राम न करें। ऋषि बुद्धिजीवी कहे जाते है। ऋषियों ने ही राम के चरित्र को लोक का राम बनाया। विश्वामित्र ने राम को प्रजा का शासन सिखाया, राजा को प्रजा के पास जाना चाहिए। कोहली ने कहा कि राजा अपने राज्य की रक्षा करता है ऋषि सम्पूर्ण राष्ट्र की चिन्ता करता है। यज्ञ से तात्पर्य हवन से नही है यज्ञ के पीछे संकल्प होता है। यह आप भी देखे कि आपके राष्ट्र को कौन खण्डित कर रहा है। राम की आध्यात्मिक, शारीरिक शक्ति की परीक्षा धनुष भंग है। माॅ कौशल्या का उद्धरण देते हुए कहा कि पिता ने कहा है वन जाओं। मै कहती हॅू कि तुम वन में मत जाओं। मेरा पिता के वचन से कही बड़ा मेरा वचन है।उन्होंने कहा कि बुद्धिजीवियों को यदि समाज से हटा दिया जाये तो समाज का कल्याण नही हो सकता। राम का संकल्प पूरी पृथ्वी से राक्षसों से हीन कर दूगा। राम का यह आश्वासन समाज के प्रति प्रतिबद्धता का परिचायक है। उन्होंने कहा कि राम रावण युद्ध तो वानरों का था सिर्फ नेतृत्व राम ने किया था। राम के नेतृत्व की यह क्षमता थी कि वे एक प्रभुतासम्पन्न राज्य से युद्ध किया। राष्ट्र के एकीकरण का कार्य भी राम ने किया।
सत्र को संबोधित करती हुई गोवा की पूर्व राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि रामकथा बार-बार सुनी जाती है। लोक शास्त्र भी राम कथा है। वाल्मीकि एवं तुलसीकृत रामायण की वजह से राम को नजदीक रख पाये है। शास्त्र एवं लोक दोनों के नायक राम है। उन्होंने कहा कि बुद्धिजीवियों का नरसंहार प्रथम मानसिक छति बाद शारीरिक छति होती है। वर्तमान संदर्भों में यह चरितार्थ होता है। आज के समय में हमें लोक और शास्त्र दोनों के राम चाहिए। हमारे अन्दर ज्ञान की
ज्योति कही से भी आनी चाहिए।
द्वितीय एकेडमी सत्र "राम सीता के, सीता राम" के विषय पर गोवा की पूर्व राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा, डाॅ0 स्वर्ण अनिल, श्रीमती शुभ्रास्था, डाॅ0 रानी झा, डाॅ0 विद्या बिन्दु सिंह एवं कार्यक्रम की संयोजिका मालनी अवस्थी ने संबोधित किया। कार्यक्रम में कुलपति प्रो0 मनोज दीक्षित, डाॅ0 विमलेन्द्र मोहन मिश्र, डाॅ0 यतीन्द्र मोहन मिश्र, विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो0 एसएन शुक्ल, मुख्य नियंता प्रो0 आरएन राय, प्रो0 अशोक शुक्ल, कार्यपरिषद सदस्य सरल ज्ञापटे, ओम प्रकाश सिंह, प्रो0 के0 के0 वर्मा, प्रो0 हिमांशु शेखर सिंह, प्रो0 एसएस मिश्र, डाॅ0 आर0के0 सिंह, प्रो0 विनोद श्रीवास्तव, डाॅ0 गीतिका श्रीवास्तव, डाॅ0 नरेश चैधरी, डाॅ0 विनोद चैधरी, डाॅ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी, डाॅ0 विनय मिश्र, डाॅ0 राजेश सिंह कुशवाहा, डाॅ0 आर0एन0 पाण्डेय, डाॅ0 अनिल विश्वा, सहित बड़ी संख्या में संस्कार भारती, ललित कला अकादमी, नई दिल्ली एवं अयोध्या शोध संस्थान के पदाधिकारी उपस्थित रहे।
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