गोसाईगंज।कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से बाजार और कारखाने पूरी तरह से बंद हैं। अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले लाखों मजदूर दर-बदर की ठोकरे खा रहे हैं। इसमें बड़ी संख्या प्रवासी मजदूरों की है। भारत में 39 करोड़ से अधिक असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की एक ऐसी बड़ी आबादी है, जो किसी भी सुरक्षा घेरे से बाहर हैं।कोरोनावायरस के परिणाम केवल स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों तक सीमित नहीं हैं। यह दीर्घकालिक मानवीय चिंताओं को बढ़ाते हैं। कारोना संकट की एक ऐसी भयावह तस्वीर दिखाई दे रही है, जो मनुष्यों को एक बार फिर गुलामी और बंधुआ मजदूरी की तरफ धकेल सकती है। उक्त बातें प्रसपा के प्रदेश महासचिव डॉ एम पी यादव ने बाद एक मुलाकात के दौरान कही।
प्रसपा के प्रदेश महासचिव डॉ एम पी यादव ने कहा कि कोरोना संकट काल में एक बड़ी आबादी मानव दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग), जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है, का सबसे आसान शिकार बन सकती है। लाखों प्रवासी मजदूरों को अभाव और भूख का सामना करना पड़ेगा। उन्हें जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए मजबूरी में साहूकारों और सूदखोरों से बहुत ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज लेने होंगे। कर्ज नहीं चुकाने की हालत में उनकी कई पीढ़ियों को दशकों तक बंधुआ मजदूर बनना पड़ेगा। उनके हजारों बच्चों को गुलाम बनाया जाएगा।
वही डॉ यादव ने कहा की अगर सरकार ने मजदूरों के बारे में जल्द नहीं चेता तो लॉकडाउन हटते ही कारखाना मालिक सस्ते श्रम को नियोजित करके अपने वित्तीय घाटे को पूरा करने की कोशिश करेंगे। ऐसी स्थिति में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की सस्ते श्रम के सबसे आसान शिकार बनने की आशंका है। उन मजदूरों में भारी संख्या में ऐसे बच्चे होंगे, जो अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए अपनी स्कूली पढाई बीच में ही छोड़ कर काम करने लगेंगे। देशभर में हजारों बच्चों का विनिर्माण इकाइयों में काम करने के लिए दुर्व्यापार किया जाएगा. यानी बंधुआ बाल मजदूरी के लिए उनकी खरीद-फरोख्त की जाएगी। उन्हें मामूली पैसे में खटाया जाएगा। ऐसे बच्चों को शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा का भी सामना करना पड़ेगा। जिनके परिवार के सामने बेरोजगारी और भुखमरी की वजह से जीने-मरने का संकट पैदा होगा।
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