महामारी नें खोली रिश्तों की पोल, कोरोना संक्रमित मृतक का समाजसेवी ने किया अंतिम संस्कार
अयोध्या। वैश्विक महामारी जहां एक तरफ मानव मात्र के लिए जानलेवा हो रही है, तो वहीं तमाम नजदीकी रिश्तों की भी पोल खोल रही है। यही नहीं इस कोरोना काल में कुछ ऐसे भी रिश्ते उभर कर सामने आये हैं, जिसके लिए स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि "मैं उस ईश्वर का पुजारी हूं जिसे अज्ञानी मनुष्य कहते हैं"। स्वामी विवेकानंद जी की लाइनों को अक्षरसः सच साबित करते हुए एक घटना के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसमें हिंदू-मुस्लिम, सिक्ख कोई ऐसा धर्म नहीं है जिसने मनुष्य को प्राथमिकता देकर सेवा करने वाले उभर कर सामने न आए हों।
वाक्या जनपद अयोध्या के राजर्षि दशरथ मेडिकल कॉलेज से जुड़ा हुआ है। जहां बीते 22 मई को पड़ोसी जनपद अंबेडकरनगर के कोरोना पॉजिटिव गंगाराम यादव को आइसोलेट कराया गया और दो दिन बाद इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। अब इसी के बाद रिश्तो की पोल खोलने वाला वाक्या सामने आया। मौत के बाद पहले तो पारिवारिक अपनों ने किनारा कस लिया, तो वहीं परिवार के एक युवक ने पड़ोसी जनपद के समाजसेवी को फोन कर मृतक के अंतिम संस्कार का आग्रह किया। समाजसेवी और लावारिस लाशों का अन्तिम संस्कार करने वाले धर्मवीर सिंह बग्गा ने बताया कि उनके पास एक युवक का फोन आया, जिसने अपना परिचय विजय यादव निवासी अहिरौली जनपद अंबेडकरनगर बताया और कहा कि कोरोना पॉजिटिव गंगाराम यादव जी की मौत हो गई है, उनका अंतिम संस्कार करने के लिए परिवार का कोई भी तैयार नहीं है। आप उनका अंतिम संस्कार कर दे, तो मेहरबानी होगी। साथ ही युवक ने भी अन्तिम संस्कार में शामिल होने से इनकार कर दिया। इसके बाद समाजसेवी बग्गा अपनी टीम के सदस्य शरफराज, डिम्पल और पवन के साथ जब शमशान पहुंचे, तो बकौल उन्हें एक और सेवा का अवसर मिला, जब प्रशासन की तरफ से एक और लावारिस का अंतिम संस्कार करने का आग्रह किया गया। इस प्रस्ताव को भी स्वीकार करते हुए समाजसेवी धरमवीर बग्गा ने दोनों लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया। इस घटना से एक बात तो साफ है कि जहां हमारे समाज में धर्म कोई हो, जाति कोई हो, यदि कुटिल और उपेक्षित मानसिकता के लोग हैं, तो ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है, जो चार कदम आगे बढ़कर मानव मात्र की सेवा में लग जाते हैं।
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