06 June 2020

उपेक्षा का शिकार है इक्ष्वाकुवंश का एकमात्र मंदिर


रिपोर्ट:राजेश उपाध्याय

मिल्कीपुर। अयोध्याजनपद मुख्यालय से 45 किमी दूर मिल्कीपुर तहसील क्षेत्र के अमावासूफी गांव में स्थित महाभारत काल के प्रतापी राजा अम्बरीष का मंदिर प्रसासनिक उपेक्षा का शिकार है। पौराणिक महत्व कि पावन तमसा नदी के किनारे स्थित अमावासूफी गाँव के दक्षिणी भाग में स्थापित इस मंदिर का बिशेष महात्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार अम्बरीष इक्ष्वाकुवंश के परमवीर राजा थे, महाराज भागीरथ के प्रपौत्र वैवस्वत मनु के पौत्र इस तरह नाभाग के पुत्र थे राजा अम्बरीष कि कथाएं रामायण, महाभारत और पुराणों बिस्तार से वरणित है ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने दस हजार राजाओं को पराजित करके ख्याति अर्जित की थी वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और अपना अधिकाशं धार्मिक अनुष्ठानो मे लगाते थे।

श्रीमद्भागवत कथा के अनुसार एक बार राजा ने एकादशी व्रत रखा व्रत के पारण से कुछ पहले अपने शिष्यों के साथ र्दुवासा श्रषि उनके यहाँ पहुंचे राजा ने श्रषि को भोजन के लिए आमंत्रित किया तभी श्रषि तमसा नदी में स्नान करने के लिए चले गए और फिर देर तक नहीं लौटे व्रत पारायण का समय वीतने को होने पर राजा ने विद्धानों के कथनानुसार जल गृहण कर लिया तभी ऋषि र्दुवाषा वहां पर आ गए और क्रोधधित होकर अपने जटा से एक बाल निकाल लिया और फिर उसे जमीन पर पटका जिससे एक वृत्यक प्रकट हो राजा का वध करने के लिए दौडा। जिसके हाथ में तलवार थी उसी समय भगवान विष्णु ने सुर्दशन चक्र को प्रगट कर वृत्यक को भस्म कर दिया और ऋषि के ऊपर सुदर्शन चक्र ने धावा बोल दिया, ऋषि तीनों लोक में भागे और अन्त मे भगवान विष्णु के आदेश पर आकर राजा से क्षमा याचना की राजा ने ऋषि को प्रणाम किया और सुर्दशन चक्र वापस लौट गया। कालान्तर मे यही पर अम्बरीष ने तपस्या करते हुए अपने जीवन को समाप्त कर दिया था और उसी जगह उनकी समाधि बनीं, जहाँ आज भी ग्रामीण रोज दीप प्रज्वलित कर के ही अपने घर में दियो को जलाते हैं, मंदिर के नाम से राजस्व अभिलेखो मे दस बीघा जमीन है और वर्ष में एक बार यहाँ मेला भी लगता है दूर दराज के लोग अपनी मन्नत मांगने यहाँ आते हैं। स्थानीय लोगो का कहना है कि इस स्थान का बिकास पर्यटन विभाग द्वारा किया जाना चाहिए जिससे यह अपने गौरव को प्राप्त करे।

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